एक बच्चे का नाम राहुल था। वह बहुत ही उत्साही और सहज बालक था। राहुल के पास एक पुरानी और प्यारी गाड़ी थी, जो उसके दादा जी ने उसे दी थी। गाड़ी के साथ, राहुल हर रोज़ अपने गाँव के चारों ओर घूमने जाता था। एक दिन, राहुल ने अपने दोस्तों के साथ एक बड़े पेड़ के नीचे बनी छोटी सी झोली में पिकनिक के लिए खाना ले कर गाड़ी पर सफ़र किया। लेकिन उनका सफ़र अचानक ही बड़े जंगल में ले गया, और गाड़ी फँस गई। राहुल और उसके दोस्तों को डर लगने लगा, क्योंकि उन्हें लगा कि अब वे कभी अपने गाँव वापस नहीं जा पाएंगे। लेकिन राहुल ने हार नहीं मानी। उसने अपने दोस्तों को साहस और संयम दिखाया और साथ मिलकर गाड़ी को निकाला। वे लंबे समय तक मिलकर काम किए और अपनी गाड़ी को निकालने में सफल रहे। राहुल ने सभी को दिखाया कि अगर उनमें विश्वास है और वे मेहनत से काम करते हैं, तो वे किसी भी मुश्किल का सामना कर सकते हैं। यह कहानी हमें यह सिखाती है कि सहयोग, साहस और मेहनत हमें किसी भी मुश्किल को पार करने में सफल बना सकती है। चाहे जितना भी कठिन हो, हमें कभी भी अपने सपनों के पीछे हार नहीं मानना चाहिए। . . . . . . . . . . . . . . . . . . ....
बाबा अब्दुल्ला ने कहा कि मैं इसी बगदाद नगर में पैदा हुआ था। मेरे माँ बाप मर गए तो उनका धन उत्तराधिकार में मैंने पाया। वह धन इतना था कि उससे मैं जीवन भर आराम से रह सकता था किंतु मैंने भोग-विलास में सारा धन शीघ्र उड़ा दिया। फिर मैंने जी तोड़ कर धनार्जन किया और उससे अस्सी ऊँट खरीदे। मैं उन ऊँटों को किराए पर व्यापारियों को दिया करता था। उनके किराए से मुझे काफी लाभ हुआ और मैंने कुछ और ऊँट खरीदे और उनको साथ में ले कर किराए पर माल ढोने लगा। एक बार हिंदुस्तान जानेवाले व्यापारियों का माल ऊँटों पर लाद कर मैं बसरा ले गया। वहाँ माल को जहाजों पर चढ़ा कर और अपना किराया ले कर अपने ऊँट ले कर बगदाद वापस आने लगा। रास्ते में एक बड़ा हरा-भरा मैदान देख कर मैंने ऊँटों के पाँव बाँध कर उन्हें चरने छोड़ दिया और खुद आराम करने लगा। इतने में बसरा से बगदाद को जानेवाला एक फकीर भी मेरे पास आ बैठा। मैंने भोजन निकाला और उसे साथ में आने को कहा। खाते-खाते हम लोग बातें भी करते जाते थे। उसने कहा, तुम रात-दिन बेकार मेहनत करते हो। यहाँ से कुछ दूर पर एक ऐसी जगह है जहाँ असंख्य द्रव भरा है। तुम इन अस्सी ऊँटों को रत्नों और अशर्...